1/23/22

Dear तुम..!!

 Dear तुम,

आज फिर ज़माने बाद तुम्हें लिखने बैठा हूँ, सच कहूँ तो कलम और कागज़ दोनों ही रूठें है मुझसे, और मन अपने ही ताने-बाने बुन रहा है। पहले की तरह ना कलम खुद तुम्हें लिखने पे आतुर है और न ये कागज़ कोई शब्द दे रहे हैं मुझे, ये जिद्दी मन भी हट किये बैठा है, जैसे कोई ख़्याल किसी रूप में आने को तैयार ही नहीं भीतर,

यहाँ हर ओर महज़ तुम हो, हर एक कोना तुमसे ही तो गुलज़ार है मेरा। आज मेरा खुद का अंदाज भी बदला-बदला सा मालूम हो रहा है मुझे। बैठा हूँ तुम्हें लिखने और देखो फज़ूल बातों में ही आधा समय गुज़र गया।

मेरा तुम्हें लिखना जानती हो कैसा है, बिल्कुल सृष्टि द्वारा किसी पुष्प के सृजन जैसा, या सूरज की पहली किरण जैसा, या फिर सर्द मौसम में लिहाफ़ जैसा है मेरा तुम्हें लिखना, देखो तीनों ही अपने आप में कमाल हैं, जब किसी फूल का जन्म होता है तो वो कितना कोमल और खूबसूरत होता है न, बिल्कुल तुम्हारी तरह, जब सूरज की पहली किरण धरती पर पड़ती है, तो एक नई  सुबह का अहसास होता है, जैसे तुम्हारे आने से मुझे हुआ है, जब सर्द मौसम में लिहाफ़ की गर्माहट मिलती है तो महफूज़ महसूस होता है ना, वैसा ही महसूस करता हूँ मैं खुद को तुम्हारे साथ।

तुमने कभी उड़ते हुए परिंदे की ओर देखा है, उसे भी तलाश होती होगी किसी महफूज़ कोने की,ठहरने की ख़ातिर, उस परिंदे सा तो नहीं मैं पर तलाश मेरी भी वही थी, तुम्हें पाने से पहले।

सुना है हर प्रेमी जोड़ा चाहता है, एक दूजे का साथ सात जन्मों के लिए, पर मैं हर जन्म में तुम्हें चाहता हूँ अपने साथ, फिर वो रूप कोई भी हो ॥ अगले जन्म में तुम मेरी दोस्त बनो, माँ बनो या फिर अर्धांग्नी मंजूर है मुझे, शर्त महज़ साथ है।

तुम्हारा ।

जैसे किसी शायर की कोई भी शायरी, ज़िक्र-ए-महबूब के बिना कभी मुकम्मल नहीं हो सकती, वैसे ही मेरी ज़िंदगी तुम्हारे गैरमौजूदगी कभी पूरी नहीं हो सकती, हर घड़ी लबों पर बस यही दुआ होती है, की कुछ रश्मों के बाद तुम हो जाओ मेरी और कहलाऊँ, तुम्हारा - मैं

माँ कहती है, तू बदल गया है, और मैं मुस्कुरा कर खुद से कहता हूँ, 'हाँ बदल गया हूँ मैं, अब एक लड़के से एक प्रेमी हो गया हूँ मैं, तुम्हारा प्रेमी ॥