1/28/21

अभी तो मै लम्बा चलूँगा | Zakir Khan



भूख देखी है,

देखी हैं तिरस्कार करती आँखें |

क़दमों से चल-चल कर रास्तों को नाम बदलते देखा है,

अपने टूटे हुए स्वाभिमान के साथ खुद को काम बदलते देखा है |

देखी है ना-उमीदी, अपमान देखा है,

ना चाहते हुए भी माँ-बाप का झुकता आत्म-सम्मान देखा है |

सपनों को टूटते देखा है,

अपनों को छूटते देखा है |

हालात की बंज़र ज़मीन फाड़कर निकला हूँ,

बेफिकर रहिये, मै शोहरत की धूप में नहीं जलूँगा |

आप बस साथ बनाये रखियेगा,

अभी तो मै लम्बा चलूँगा |