भूख देखी है,
देखी हैं तिरस्कार करती आँखें |
क़दमों से चल-चल कर रास्तों को नाम बदलते देखा है,
अपने टूटे हुए स्वाभिमान के साथ खुद को काम बदलते देखा है |
देखी है ना-उमीदी, अपमान देखा है,
ना चाहते हुए भी माँ-बाप का झुकता आत्म-सम्मान देखा है |
सपनों को टूटते देखा है,
अपनों को छूटते देखा है |
हालात की बंज़र ज़मीन फाड़कर निकला हूँ,
बेफिकर रहिये, मै शोहरत की धूप में नहीं जलूँगा |
आप बस साथ बनाये रखियेगा,
अभी तो मै लम्बा चलूँगा |