1/28/21

अभी तो मै लम्बा चलूँगा | Zakir Khan



भूख देखी है,

देखी हैं तिरस्कार करती आँखें |

क़दमों से चल-चल कर रास्तों को नाम बदलते देखा है,

अपने टूटे हुए स्वाभिमान के साथ खुद को काम बदलते देखा है |

देखी है ना-उमीदी, अपमान देखा है,

ना चाहते हुए भी माँ-बाप का झुकता आत्म-सम्मान देखा है |

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1/2/21

खुद को इतना भी मत बचाया कर बारिशें हों तो भीग जाया कर



खुद को इतना भी मत बचाया कर

बारिशें हों तो भीग जाया कर

चाँद लाकर कोई नहीं देगा

अपने चेहरे से जगमगाया कर