10/30/23

प्रेम

'रेत सी होती हो तुम
किनारों पर आजाद, दूर तक खुली - फैली

'लहर होता हूँ मैं
'बार-बार लौटता हूँ तुम्हारे पास हर बार और अधिक उफान लिए

स्पर्श के इस उतार-चढ़ाव में 
'नमक होती है देह '
समुद्र होता है प्रेम |

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