5/2/20

कभी कभी मेरे दिल मैं ख्याल आता हैं

कभी कभी मेरे दिल मैं
ख्याल आता हैं
कि ज़िंदगी तेरी जुल्फों
कि नर्म छांव मैं
गुजरने पाती
तो शादाब हो भी सकती थी।

यह रंज-ओ-ग़म कि सियाही
जो दिल पे छाई हैं
तेरी नज़र कि शुआओं मैं
खो भी सकती थी।

मगर यह हो न सका और अब ये
आलम हैं
कि तू नहीं, तेरा ग़म
तेरी जुस्तजू भी नहीं।

गुज़र रही हैं कुछ इस
तरह ज़िंदगी जैसे,
इससे किसी के सहारे कि
आरझु भी नहीं.

न कोई राह, न मंजिल, न
रौशनी का सुराग
भटक रहीं है अंधेरों
मैं ज़िंदगी मेरी.

इन्ही अंधेरों मैं रह
जाऊँगा कभी खो कर
मैं जानता हूँ मेरी
हम-नफस, मगर यूंही

कभी कभी मेरे दिल मैं
ख्याल आता है.
     
      -Amitabh Bacchan