5/19/20

एक शाम सजा कर रखी है मैंने...

एक शाम सजा कर रखी है मैंने

बेसब्री के फूलों से,

एक आह मिलन की निकल रही है

आज हमारे दिलों से।

नर्म मखमल की सेज सजाई और

पातों की सी तकिया,

फूलदान सजा बन कर बगिया

लाल सर्द गुलाबों से।

दीवाल घड़ी पर समय तुम्हारी

राह प्यार से देख रहा,

तस्वीरों ने बेसब्री बढ़ा दी ऐसे

सटकर दीवारों से।

आम्रपल्लवों से सज्जित द्वार; तैयार

तुम्हारे स्वागत को,

हुआ जा रहा मेरा सदन प्रकाशित

आनन्द के खद्योतों से।

तुम जल्दी से आना मेरे साजन;

शाम दीवानी हो रही,

स्नेह खिल रहा बन कर लाली

मेरे कोमल कपोलों से।

एक शाम सजा कर रखी है मैंने

बेसब्री के फूलों से,

एक आह मिलन की निकल रही है

आज हमारे दिलों से।

-आरती मानेकर