हर वस्तु अथवा व्यक्ति का एक अपना मूल स्वभाव होता है। अग्नि का स्वभाव है जलाना-हाथ डालेंगे तो वह जलाएगी ,चाहे हाथ जान-बूझकर पड़े या गलती से। सर्प का स्वभाव है विष उगलना-चाहे दूध पिलाओ या प्रहार करो ,वह विष उगलेगा ही। बिच्छू का स्वभाव है डंक मारना-कितना ही प्यार करो वह डंक मारेगा ही। वस्तुत: स्वभाव उसी को कहते हैं जो ना बदला जा सके। ना किसी के व्यवहार से, ना किसी भी परिस्थिति में।
"स्वभाव यानी अपना भाव। "
चंदन का स्वभाव है सुगंध। चाहे उसे सूंघो, चाहे घिसो, चाहे अग्नि में जलाओ, चाहे टुकड़े-टुकड़े कर डालो वह सुगंध ही देगा। चंदन तो अपने को काटने वाली कुल्हाड़ी को भी सुगंधित कर देता है।
अन्य जीवों - तत्वों की तरह परमात्मा ने मनुष्य को भी एक मूल स्वभाव दिया है-वह है दया का, करुणा का, क्षमा का, शील का, आपसी प्रेम व भाईचारे का। परंतु अफसोस, अधिकांश लोग अपने मूल स्वभाव से कटकर रह गए हैं। वे अपने ऊपर एक झूठा आवरण चढ़ा चुके हैं। दूसरे के स्वभाव से परिवर्तित होकर स्वयं को भूल जाना, भला व्यक्ति का मूल स्वभाव कैसे हो सकता है? आज हमारी हर गतिविधि दिखावे में बदल गई है, हमारा हर क्रिया-कलाप हमें स्वयं से दूर ले जा रहा है। कारण साफ है, हम जो कर रहे हैं ऊपर से कर रहे हैं। प्राण से नहीं, हृदय से नहीं, मन से नहीं।
अन्ततः स्वयं के मूल स्वभाव को पहचानो ।।
©Adarsh_Maurya